बेला सी महकी साँसों का है आज क्षणिक उन्माद
कल वही जलाने को होगी बस एक सुलगती याद
कुछ पल मन में सिहरन सी थी जब हाथों में थे हाथ
कुछ भी तो स्थाई नहीं यहाँ बस पल दो पल का साथ
सब सिमट पुने तूफ़ान गए किसका किस से अनुराग
कुछ पल के साथी सभी यहाँ किस पर किस का अधिकार
कुछ विजय भाव से गर्वोन्नत कोई बैठा लाचार
बाहों में घिर आया बसंत ले मादकता निशेष
पर बाँध न पाया बीते पल दीवानों का परिवेश
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