Wednesday, September 29, 2010

Ghazal saraan kuch moujjiz logon ke saath

Yeh kyaa kamaal kaa dour tha....
Sh. D.D Thakur (finance minister), Sh. J.K Hansraj Sharma (FM Punjab), Sh. K.l Poswal (Transport minister Haryana -mere bahut antrang mitr), Sh. I.S Bindra (Secretary Industries Punjab), Sh. S.P Bagla (Principal Secretary Punjab), Sh. J. L Nanda

Aur aapkaa khaaksaar - Suman Tiwari harmonium par, ek khsoosi mehfil mein ghazal saraan

हम तुम दोनों साथ थे

गंध सुवासित केश रूपसी गीले पुलकित गात थे 
                     हम तुम दोनों साथ थे 
मौसम नें आवाज  लगाई हर देहरी हर द्वार से 
नेह लदी लहरें लहरआयी आँचल के हर तार से 
निशिगंधा के फूल खिले थे कुछ कहने को अधर हिले थे
असीमता बाहों में आकर सिमटी कुछ मनुहार से 
     नदिया तीरे बंसी के स्वर गूंजे सारी रात थे 
                          हम तुम दोनों साथ थे 
नीर जामुनी वसन पिया के आन घिरे आकाश पर् 
अरुण कपोलों से कनेर के फूल झरे आकाश में
संसृति नें सुध बुध के बंधन तोड़ रचाए थे आलिंगन 
भ्रमित धरा बेसुध हो सोयी अम्बर के भुज पाश में 
    होंटों पर् मुस्कान अमिट थी और नयन जलजात थे 
                          हम तुम दोनों साथ थे
 अस्थिर मन से डोल रहे थे कमल गुलाबी ताल पर् 
चन्दा की किरणे बिखरी थी नवल नीम की डाल पर् 
अन्धिआरों कि चाह घनी थी कुछ पल को तुम मौन बनी थी 
अनजाने अंकित कर डाले गीले चुम्बन गाल पर् 
       तारे नभ में आँख मिचौली खेले सारी रात थे 
                            हम तुम दोनों साथ थे 

Tuesday, September 21, 2010

हम से ना पूंछे

हर पल में इक सदी का मज़ा हम से ना पूंछें 
दो पल की जिंदगी है मज़ा हम से ना पूंछे
हम रोज मर के जीते हैं किस के वास्ते 
किश्तों की खुदकशी का मज़ा हम से ना पूंछें
हम नें क्या पाया  प्यार में ये तुमको क्या पता 
जो खो चुके हैं काश कोई हम से ना पूंछें 
हँसते थे हम भी बहुत सुमन जानते हैं सब 
क्यों अब उदास रहते हैं कोई हम से ना पूंछें 

Monday, September 13, 2010

teri zulf ke saaye

tumhaare ishk nain manzar ye kayaa dikhaaye hain
kabhi naa khul ke hanse tadpe hain rote jaayen hain
chamak uthe hain maeri aankh ke ye aansoo kion
mere mazaar pe kis nain diye jalaaye hain
naa karwaan naa  koi saath naa shaaraa hai
ajeeb mod hai jiske kareeb aaye hain 
ye teri zulf ke saaye hain yaan bharam dil ke 
kadkati dhoop main jo abr ban ke chaaye hain

Friday, September 10, 2010

स्वर्ण मृग

मित्र में परेशान तुम्हे कहते कहते थक गया 
    पर् तुम नहीं माने ओर गयी रात तक कुंवारी महक तलाशते रहे
तुम नें फूल की हर पंखुड़ी को छूना चाहा  पाना चाहा 
पर छू ना सके पा ना सके 
                     इतने पर भी तुम नहीं माने 
ओर दूर जंगलों में तलाश करने चले गए 
आवाजों के जंगल में
          जहां गयी रात तक कच्ची ताड़ी के नशे में 
नंगे जिस्म नंगे पाँव नाचते रहे
कुछ पल को तुम नें सोचा की तुम्हारी खोज पूरी हुई
तभी तुम को कुछ भास् हुआ 
मैले तकिये पर् लगे चिपचिपे  जबाकुसुम के तेल का एहसास हुआ
 जब तुम नें ये जाना  की
तमाम दिन  टाआयप्रिटर पर् टाइप करते हुए
उसकी उन्ग्लिआं दम तोड़ चुकी थी 
फ्रीज्ड  बीअर के ग्लास ओर सिगरेट के धुंए  नें उसको निचोड़ लिया था
ओर तुम किसी पुरानी लोक कथा के नायक से स्वर्ण मृग के पीछे भागते रहे
पर आज तक पा न सके     

Saturday, September 4, 2010

भूला बिसरा गीत

आज ग्यान के बंधन ढीले बस भ्रम का आस्तित्व सजग है 
पुरवईया के प्रथम श्वास के स्वप्नों का उन्माद शेष है
पनघट से मरघट तक तुमको मैंने थी आवाज़ लगाई 
लेकिन मेरे गीतों  की ध्वनि शायद तुम तक पहुँच ना पायी 
तेरे आँचल की छाया में जितने गीले गीत रचे थे 
उन गीतों के शब्दों के अब मुट्ठी भर अनुवाद शेष हैं 
   होंटों पर मुस्कान बिखेरे अंतस  में वेदना पली है 
बीच शहर बिकने को ही तो मेरे मन की कली खिली है 
आज सत्य नीलाम हो रहा बस कोरे अपवाद शेष हैं
लरज़ रहे हांथों से सहसा अनजाना घूंघट सरकाया 
थोड़ा सा मन में साहस था थोडा मौसम नें भरमाया 
में अपराधी जनम जनम का मुझे लकीरें मत दिखलाओ 
दूध धुली रजनी में कितने करने को अपराध शेष हैं