जिन्दगी तुझ को क्यूं मनाते हैं
रोज़ दीवाने बन ही जाते हैं
कुछ तो दुश्मन मेरे पुराने हैं
और कुछ दोस्त चल के आते हैं
कोई शम्मा जला तो दो यारब
इस गली में अंधे आते हैं
पत्थरों के शहर रह के सुमन
बेवजह आईना दिखाते हैं
Thursday, December 30, 2010
Saturday, December 25, 2010
प्यार के किस्से
प्यार के किस्से बहुत पुराने हैं
फिर भी लगते ये किओं सुहाने हैं
आज तक ये पता न लग पाया
कौन से अपने आशियानें हैं
जिन्दगी चार पल कि जी तो लें
चंद लम्हों के ये खजाने हैं
मुस्कुराते जहां हैं कांटे भी
बस वही सुमन के ठिकाने हैं
फिर भी लगते ये किओं सुहाने हैं
आज तक ये पता न लग पाया
कौन से अपने आशियानें हैं
जिन्दगी चार पल कि जी तो लें
चंद लम्हों के ये खजाने हैं
मुस्कुराते जहां हैं कांटे भी
बस वही सुमन के ठिकाने हैं
Thursday, December 23, 2010
कहीं तुम देह में केसर
अजब है हाल मौसम का फिरोज़ी नम घटाओं में
शराबी गंध इठला कर घुली गीली हवाओं में
कहीं तुम केश में बेला सजाये तो नहीं बैठी
सिमट कर कर तलों में कंचनी सब देह भर आयी
युगों की साध कर पूरी कंवारी आस गदराई
सुलगती जलन का आभास मिलता है चनारों में
महक जूह्ही के फूलों की उड़ी जाती बहारों में
कहीं तुम देह में केसर रमाये तो नहीं बैठी
अमावस के अंधेरों की कालिमा तज कर
बिखेरे राष्मिआं आयी सुनहली लालिमा सज कर
पहन कर वसन वासन्ती अनेकों रूप इतराए
सृजन की तूलिका में इन्द्रधनुषी रंग भर आये
कहीं तुम हाथ में मेहँदी रचाए तो नहीं बैठी
निरख कर रूप चांदी सा लजाया आज हर दर्पण
रगों में बिज्लिओं सी कौंधती मृदु मिलन की सिहरन
निहारें जोगिया योवन पिया के पथ मुंडेरों से
झरे हैं लाल रंग के फूल राहों में कनेरों से
कहीं तुम मांग में सेंदुर सजाये तो नहीं बैठी
शराबी गंध इठला कर घुली गीली हवाओं में
कहीं तुम केश में बेला सजाये तो नहीं बैठी
सिमट कर कर तलों में कंचनी सब देह भर आयी
युगों की साध कर पूरी कंवारी आस गदराई
सुलगती जलन का आभास मिलता है चनारों में
महक जूह्ही के फूलों की उड़ी जाती बहारों में
कहीं तुम देह में केसर रमाये तो नहीं बैठी
अमावस के अंधेरों की कालिमा तज कर
बिखेरे राष्मिआं आयी सुनहली लालिमा सज कर
पहन कर वसन वासन्ती अनेकों रूप इतराए
सृजन की तूलिका में इन्द्रधनुषी रंग भर आये
कहीं तुम हाथ में मेहँदी रचाए तो नहीं बैठी
निरख कर रूप चांदी सा लजाया आज हर दर्पण
रगों में बिज्लिओं सी कौंधती मृदु मिलन की सिहरन
निहारें जोगिया योवन पिया के पथ मुंडेरों से
झरे हैं लाल रंग के फूल राहों में कनेरों से
कहीं तुम मांग में सेंदुर सजाये तो नहीं बैठी
Wednesday, December 22, 2010
आज़माओ मुझे
आज़मा सकते हो तो आज़माओ मुझे
अगर हो साफ़ तो आईना दिखाओ मुझे
किसी गरीब के घर का दिया हूँ मध्हम सा
ज़रा उस तेज हवा से कहो बुझाओ मुझे
में मुफलिसी का हूँ आंसू मेरा वजूद ही क्या
कहो ज़रदार से अब रेत पर गिराओ मुझे
में पत्थरों में रह कर हूँ बन गया पत्थर
सुमन दुनिया से कहो देर तक रुलाये मुझे
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