हर पल में इक सदी का मज़ा हम से ना पूंछें
दो पल की जिंदगी है मज़ा हम से ना पूंछे
हम रोज मर के जीते हैं किस के वास्ते
किश्तों की खुदकशी का मज़ा हम से ना पूंछें
हम नें क्या पाया प्यार में ये तुमको क्या पता
जो खो चुके हैं काश कोई हम से ना पूंछें
हँसते थे हम भी बहुत सुमन जानते हैं सब
क्यों अब उदास रहते हैं कोई हम से ना पूंछें
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
"हँसते थे हम भी बहुत सुमन जानते हैं सब
ReplyDeleteक्यों अब उदास रहते हैं कोई हम से ना पूंछें"
प्यार हो गया है इसलिए आप खुद ही तो बता रहे हैं.
अच्छा लगा - हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत खूब लिखा है....
ReplyDeleteएक अच्छी कोशिश बात कहने की सुमन जी।
ReplyDelete"जी कर मरते लोग बहुत कम अधिक यहाँ मर के जीते"
सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com
हिन्दी में थोड़ा सुधार आपके ब्लॉग के लिए अच्छा साबित हो सकता है। आपकी भावनाएं अच्छी हैं।
ReplyDeletehttp://www.tikhatadka.blogspot.com/
हिन्दी लेखन में आपका स्वागत है । इस क्रम को जारी रखें और कभी फुरसत मिले तो http://www.samaydarpan.com पर भी नजर जरूर डालें । आपकी रचनाओं का समयदर्पण में स्वागत है ।
ReplyDeleteधन्यवाद
हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteआप सब का बहुत बहुत आभार प्रकट करता हूँ
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