अजब है हाल मौसम का फिरोज़ी नम घटाओं में
शराबी गंध इठला कर घुली गीली हवाओं में
कहीं तुम केश में बेला सजाये तो नहीं बैठी
सिमट कर कर तलों में कंचनी सब देह भर आयी
युगों की साध कर पूरी कंवारी आस गदराई
सुलगती जलन का आभास मिलता है चनारों में
महक जूह्ही के फूलों की उड़ी जाती बहारों में
कहीं तुम देह में केसर रमाये तो नहीं बैठी
अमावस के अंधेरों की कालिमा तज कर
बिखेरे राष्मिआं आयी सुनहली लालिमा सज कर
पहन कर वसन वासन्ती अनेकों रूप इतराए
सृजन की तूलिका में इन्द्रधनुषी रंग भर आये
कहीं तुम हाथ में मेहँदी रचाए तो नहीं बैठी
निरख कर रूप चांदी सा लजाया आज हर दर्पण
रगों में बिज्लिओं सी कौंधती मृदु मिलन की सिहरन
निहारें जोगिया योवन पिया के पथ मुंडेरों से
झरे हैं लाल रंग के फूल राहों में कनेरों से
कहीं तुम मांग में सेंदुर सजाये तो नहीं बैठी
बहुत सुन्दर लिखी है .......मुझे निम्न पंक्ति बहुत ही अच्छी लगी.......
ReplyDelete"सृजन की तूलिका में इन्द्रधनुषी रंग भर आये"