Monday, August 9, 2010

सावन सुहाना

पी कहाँ पपीहा बोल उठा मौसम   नें ली फिर अंगडआयी
बह गयी चूमती फूलों को ले नाम तुम्हारा पुरवाई
अलसाई कलिआं महक उठी सुरभित सब वातावरण हुआ
घनघोर  घटाएं बरस पड़ी सावन का यूं  आगमन हुआ
       फिर हवा केसरी गंध  युक्त अधरों पर् मादक आग लिए
गीली  कचनारी बाहों में कुछ मीठे मीठे राग लिए
       गीला मन गीला व्याकुल तन  गीले  मानस के गान
अब कैसा किस को दिशा बोध सब अपने से अनजान
उन फैले सघन चनारों में कुछ अनबूझे से प्रश्न
       बल खाती टेढ़ी राहों को तय करने के यत्न
                    

2 comments:

  1. Main bahut hi apne-aap ko luck mahsus kar rahahu ki aaplogo ke sansarg (sampark)me itni achhi achhi lekh padhne aur apna vichar prakat karne kiliye vaisha hi mahol mastishk uttpann hone lagta hain

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