Tuesday, September 21, 2010

हम से ना पूंछे

हर पल में इक सदी का मज़ा हम से ना पूंछें 
दो पल की जिंदगी है मज़ा हम से ना पूंछे
हम रोज मर के जीते हैं किस के वास्ते 
किश्तों की खुदकशी का मज़ा हम से ना पूंछें
हम नें क्या पाया  प्यार में ये तुमको क्या पता 
जो खो चुके हैं काश कोई हम से ना पूंछें 
हँसते थे हम भी बहुत सुमन जानते हैं सब 
क्यों अब उदास रहते हैं कोई हम से ना पूंछें 

8 comments:

  1. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  2. "हँसते थे हम भी बहुत सुमन जानते हैं सब
    क्यों अब उदास रहते हैं कोई हम से ना पूंछें"

    प्यार हो गया है इसलिए आप खुद ही तो बता रहे हैं.
    अच्छा लगा - हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. एक अच्छी कोशिश बात कहने की सुमन जी।

    "जी कर मरते लोग बहुत कम अधिक यहाँ मर के जीते"

    सादर
    श्यामल सुमन
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  4. ‌‌‌​हिन्दी में थोड़ा सुधार आपके ब्लॉग के ​लिए अच्छा सा​बित हो सकता है। आपकी भावनाएं अच्छी हैं।

    http://www.tikhatadka.blogspot.com/

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  5. हिन्दी लेखन में आपका स्वागत है । इस क्रम को जारी रखें और कभी फुरसत मिले तो http://www.samaydarpan.com पर भी नजर जरूर डालें । आपकी रचनाओं का समयदर्पण में स्वागत है ।

    धन्यवाद

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  6. हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  7. आप सब का बहुत बहुत आभार प्रकट करता हूँ

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