Wednesday, December 22, 2010

आज़माओ मुझे

आज़मा सकते हो तो आज़माओ मुझे 
अगर हो साफ़ तो आईना दिखाओ मुझे 
किसी गरीब  के घर का दिया हूँ मध्हम सा 
ज़रा उस तेज हवा से कहो बुझाओ मुझे 
में मुफलिसी का हूँ आंसू मेरा वजूद ही क्या 
कहो ज़रदार से अब रेत पर गिराओ मुझे
में पत्थरों में रह कर हूँ बन गया पत्थर
सुमन दुनिया से कहो देर तक रुलाये मुझे 

2 comments:

  1. बहुत पसन्द आया
    हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद

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